Vol. 2, Issue 2 (2016)
नारी चेतना के अग्निपंख
Author(s): प्रा. केंद्रे डी. बी.
Abstract: नारीतदअपनी पुर्ण शक्ति के साथ अपनी गरीमा एवं अस्मिता को पुनः प्राप्त कर रही है। उसकातदउपेक्षा से भरा हुआ जीवन अब समाप्ति की कगार पर है। देश और दुनिया के प्रत्येकतदक्षेत्र में वह अब कसी भी स्तर पर पुरूष से कम नहीं है। स्त्री विमर्श का संघर्ष स्त्रीतदपुरूष दोनों को एक सम समान धरातल पर लाकर खडा करता है। उसने पुरूषों को यहतदजताया है कि नारी का भी स्वतंत्र एवं पुरूष तुल्य अस्तित्व इस पृथ्वी पर है। स्त्री ने अब यहतदसाबित किया है कि, वह देवी बनकर मंदिरों की चार दीवारी में या स्त्री बनकर घरतदगृहस्ति का चुल्हा-चैका, कपडे-बरतन धोते रहने में ही अपने आपको खपानातदनहीं चाहती। उसने दुनिया को बताया है कि वह भी एक मानवी है। उसें भी अपनीतदजिंदगी जीने का पुर्ण अधिकार है। वह दया की पात्र बनना नहीं चाहती। वह शक्तिस्वरूपातदबनकर जीना चाहती है।