Vol. 2, Issue 4 (2016)
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंधों में जीवन-दर्शन
Author(s): डाॅ. आलम शेख
Abstract: मनुष्य प्रकृति की सबसे उत्तम कृति है। प्रकृति को जीतने और सब कुछ हासिल करने की लालसा ने मनुष्य में धीरे-धीरे मनुष्यत्व खत्म हो रहा है और उस पर पाश्विक प्रवृत्ति फिर से हावी हो रही है। आचार्य हजारप्रसाद द्विवेदी अपने निबंधों के द्वारा इस सत्य को उद्घाटित करते हुए उत्तम जीवन के गूढ़ रहस्यों से हमारा परिचय कराते हैं । वे मनुष्य के संदेहास्पद प्रवृत्ति को उजागर करते हुए ‘शीरीष के फूल’ शीर्षक निबंध के माध्यम से उसके एक और दुर्गुण स्वार्थपरता की ओर भी हमारा ध्यान खीचते हुए जिजीविशा को मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति मानते हैं। ‘कुटज’ शीर्षक निबंध के माध्यम से द्विवेदी जी जीवन संघर्षों का सामना करते हुए, मन को नियन्त्रित कर दुःखी जीवन को सुख में परिणत करने की राह प्रदर्शित करते हैं। द्विवेदी जी का मानना है कि जीवन लक्ष्यपूर्ण होना चाहिए इसलिए वे ‘जीवम शरद्ः शतम’ शीर्षक निबंध में लक्ष्यपूर्ण कर्मप्रधान जीवन को ही सार्थक मानते हैं। द्विवेदीजी अपने निबंधों के माध्यम से ऐसा जीवन-दर्शन हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं जो जीवन को लक्ष्यपूर्ण और कर्म प्रधान बनाने एवं स्वार्थपरता और परतन्त्रता को दूर कर अदृश्य शक्ति पर आस्था रखते हुए जीवन के संघर्शों से लड़कर सामुहिक रूप से उत्तम जीवन जीने की कला सीखाती है।