Vol. 2, Issue 4 (2016)
स्त्री की कविताओं में स्त्री
Author(s): भावना मासीवाल
Abstract: साहित्य में महिलाओं का लेखन के स्तर पर आना और लेखन के माध्यम से अपनी तत्कालीन सामाजिक पारिवारिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति को उजागर करना, एक साहसिक काम रहा है। साहसिकता का संदर्भ उनके लेखन पर लगाए इल्जामों से भी है। जहाँ उनके लेखन को परिवार तक ही सीमित होने की बात कही गई जो कुछ स्तर सही भी है। साहित्य में स्त्री लेखन के प्रति यह मानसिकता समाज के मनोवैज्ञानिक अध्ययन की मांग करता है। आखिर क्या कारण रहा कि उनका लेखन का दायरा सीमित रहा। अक्सर महिलाएं स्वयं भी यह सवाल उठाती है कि आज भी समाज में यदि पुरुष अपने परिवार का त्याग करके सामाजिक कर्म से जुड़ता है तो वह महापुरुष कहलाता है क्योंकि उसने अपने काम की प्राथमिकता में अपने परिवार का त्याग किया। दूसरी ओर यदि कोई महिला इस तरह का विचार करती है तो तुरंत वह आक्षेपों के घेरों में खड़ी कर दी जाती है। ऐसे में कैसे समानता और बराबरी की बात साहित्य और समाज में की जा सकती है। यदि हम इतिहास की ओर रुख करते हैं तो राजा सिद्धार्थ के महात्मा बुद्ध बनने की प्रक्रिया का आभास हो आता है। क्या महिलाओ के संदर्भ में यह विचार स्वीकार्य है। साहित्य भी समाज से इत्तर नहीं है बल्कि कहा जा सकता है कि साहित्य समाज की मानसिकता का प्रतिबिंब है। क्योंकि साहित्य के भीतर भी स्त्री और पुरुष लेखक और लेखन के बीच द्वंद्व उभरता देखा गया है और उस के कारणों को जानने का प्रयास भी किया गया।