Vol. 2, Issue 6 (2016)
पंथी-गीत में अभिव्यक्त सत्यानुभूति: संत गुरू घासीदास जी
Author(s): प्रो. राजकुमार लहरे
Abstract: मुगल, अंग्रेजी तथा देशी राजव्यवस्था से भारतीय समाज दुर्दशा का पर्याय हो गया था। लोग राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक व सांस्कृतिक स्तर में अपने आप को बँधा, कमजोर व निःसहाय महसूस करने लगा था। शिक्षित वर्ग अपनी श्रेष्ठता के लिए जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, धर्म, वर्णभेद के आडम्बर में घिरे थे और ’’साहित्य समाज का दर्पण होता है’’ का स्वार्थपूर्ण व्याख्या करने लगे थे। जिससे सामान्य जनजीवन दिक्भ्रमित व अस्त-व्यस्त हो गया था। ऐसी परिस्थिति में छत्तीसगढ़ प्रांत में राज व समाज को एक सही दिशा देने के लिए सन् 18 दिसंबर 1756 दिन सोमवार (चंद्रवार)-1850ई01. को तत्कालीन सोनाखान अंचल के गाँव गिरौदपुरी, जो वर्तमान में जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़ में स्थित है। महँगु-अमरौतिन के घर एक बालक का जन्म हुआ। ’’होनहार बिरवान के होते चिकने पात’’ को चरितार्थ करता हुआ विलक्षण प्रतिभा के धनी गुरु बाबाघासीदास जी सत्य के गुणधर्म से समाज को अवगत कराया। तथा लोगों को ज्ञान, ध्यान, योग के सहारे सत्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। इन्होंने सत्य ही ईवर है, सादा जीवन उच्च विचार तथा मानव मानव एक समान कहा। सत्य को वैज्ञानिक सोच के अनुरुप तर्कसंगत व ज्ञानपूर्ण बताया। जिससे स्थानीय से वैश्विक तक वर्तमान का सर्वांगीण विकास व समसामयिक समस्याओं का निदान संभव है। सतनाम ही सृष्टि का बीज-मंत्र है।