Abstract: आदिवासी समाज के पास समृद्धशाली इतिहास है जिससे वह अनभिज्ञ है वीरों, महावीरों शहीदों, क्रान्तिकारियों और राजो-महाराजों से लेकर अनेकाने क्षेत्रों में पारंगत व विद्वान रह आदिवासियों का इतना विस्तृृत अध्ययन देश के कोने-कोने में विद्यमान है जिसे सार्वजनिक किये जाने की आवश्यकता है। यह गौरवपूर्ण इतिहास भारतीय आदिवासी समाज को गौरवान्वित करने के लिए पर्याप्त है आदिवासी समाज अभी भी आश्रित साधनों, संसाधनों पर खड़ा दिखाई देता है, जबकि आत्मनिर्भरता के साथ सामाजिक संसाधन पैदा करने की सबसे बड़ी जरूरत है अपने गौरवशाली इतिहास को विस्तृत कर उनकी जय जयकार करना जिन्होंने कुछ छीनकर, लूटकर न सिर्फ जंगलों, पहाड़ों व कंदराओं में निर्वाश्रित जीवन व्यतीत करने को बाध्य किया। यह मूर्खता पूर्ण कृत्य इसलिए हो रहा क्योंकि हम जानते नहीं है और आदिवासियों का यह बड़ा दुर्भाग्य है कि वह जानना भी नही चाहता है।
बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा था कि ‘‘गुलामों को गुलामी का अहसास करा दो, वह गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ देगा।’’
सर्वश्रेष्ठ संस्कृति से बंधे होने के बावजूद देश की ये जनजातियाँ अशिक्षा, अजागरूकता, क्षेत्रियता व जातीय-उपजातीय विभाजन के कारण गर्व और गौरव दोनों से वंचित है लाख कोशिशों के बाद भी आदिवासी समाज समुद्र का स्वरूप धारण नहीं कर पाया है।
आज आदिवासी समाज प्रगति के पथ पर धीरे-धीरे अग्रसर हो रहा है लेकिन जिस गति से समाज की उन्नति होना चाहिए उससे वह कोसों दूर है। अशिक्षित समाज होने के कारण जागरूकता का अभाव है जो शिक्षित हैं उनमें से चंद लोग ही जागरूकता की श्रेणी में आते हैं।
जब-जब समय का चक्र अपनी परिधि में पुनः नये सिरे से घूमता है, तब-तब मानव में एक नये उत्साह का संचार होता है। कई तमन्नाएँ जागृत होतीं हैं। कई संकल्प लेने के लिए मन आतुर होता है क्योंकि समय अब एक नई पहचान लेकर आया है और स्वाभाविक है कि नई शुरूआत पूरे जोशो-खरोश के साथ होती है। समय परिवर्तनीय है इसका अर्थ समय सदैव बदलता रहता है। कभी एक सा नहीं होता और न ही कहीं ठहरता है। समय का चक्र सदैव गतिमान ही रहता है।