Abstract: स्त्री ईश्वर की अद्भुत सृष्टि है। स्त्री शान्ती, शक्ति, शील सौन्दर्य की मूर्ति है। स्त्री सशक्तिकरण की बात सदियों से चली आ रही है और यही सशक्तिकरण उपन्यासों के माध्यम से भी व्यक्त होता दिखाई दे रहा है। स्त्री संघर्ष करते हुए आगे बढ़ रही है। उसके सामने अनेक चुनौतियाँ हैं; उनका सामना भी बड़े धैर्य के साथ कर रही है। अपनी पहचान शक्ति और सत्ता को जानने की कोशिश करते हुए स्त्री जागरण की बात उपन्यासों के माध्यम से व्यक्त होती दिखाई देती है। उपन्यास समाज के साथ चलनेवाली साहित्यिक विधा है। साहित्यक विधा में स्त्री को सही रूप में जानने-पहचानने की कोशिश की गई है।
प्रेमचन्द और नागार्जुन के सभी उपन्यासों में प्रायः स्त्रियों का यथार्थ रूप प्रकट हुआ है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, दहेज-प्रथा, अनमेल विवाह, बहुंपत्नी विवाह, विधवा विवाह, नारी शिक्षा, अछूत समस्या, वेश्या समस्या, स्वतंत्र यौन संबंध, आदि सभी विसंगतियों पर चर्चा कर इनका निवारण करने का प्रयत्न किया है।