अनूप अशेष के नवगीतों का वाचन एवं रसास्वादन करनें से नवगीतों की शैल्पिक श्रेष्ठताएं सर्वोत्तम रूप से उभरकर आती है। नवगीतों के एक संकलन की समीक्षा में शिल्प संबंधी चर्चा करते हुए साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये कि-तुकांतो के नकार और मात्राओं के बाबजूद इन गीतों में लयबद्धता सम्पूर्णतः मौजूद रहती है। बढिया तुकांतों और गिनी-चुनी मात्राओं वाली पंक्तियाॅं भी लयहीन हो सकती है, जिन्हें दर असल छंदहीन कहा जाना चाहिए। वास्तव में नवगीत की रूप पहचान तुकांत और सामाजिक छंदों पर ही आश्रित नहीं है, वरन् सच तो यह है कि उसके शिल्प स्तर पर आश्चर्यजनक विविधता मिलती है। साहित्य मंच पर नवगीत की प्रतिष्ठा के साथ ही नवगीत रचनाकारों की पंक्तियों में वृद्यि हुई है उसका एक प्रमुख कारण उसके शिल्प को साध्य मानकर ऐसे छंद की रचना करना जो तुक और मात्रात्मक वृत्त की रचना करता है। ऐसे रचनाकार काव्य की लयात्मकता से उतने ही अनजान है जितने मुक्त छंद के नाम पर गद्य अथवा कविता लिखने वाले काव्यकार है।
डाॅ0 बीरेन्द्र कुमार त्रिपाठी. अनूप अशेष के नवगीतों की शैल्पिक श्रेष्ठताए. International Journal of Hindi Research, Volume 3, Issue 3, 2017, Pages 73-75