संसार का सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद है। ऋग्वेद से पहले भी संभव है कोई भाषा रही हो परन्तु आजतक उसका कोई लिखित रूप प्राप्त नहीं हो पाया। इससे यह अनुमान होता है कि संभवतः आर्यों की सबसे प्राचीन भाषा ऋग्वेद की ही भाषा, वैदिक संस्कृत ही थी। हिन्दी का विकास क्रम-संस्कृत, पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ठ -प्राचीन/प्रारम्भिक हिन्दी है। हिन्दी वस्तुतः फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है - हिन्द से सम्बन्धित या हिन्दी का । हिन्दी शब्द की निष्पत्ति सिन्धु-सिंध से हुई है क्योंकि ईरानी भाषा में ‘‘स‘‘ को ‘‘ह‘‘ बोला जाता है। इस प्रकार हिन्दी शब्द वास्तव में सिन्धु शब्द का प्रतिरूप है। आज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते हैं वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है। आर्यभाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी। वैदिक भाषा में वेद, संहिता एवं उपनिषदों-वेदांत का सृजन हुआ है। वैदिक भाषा के साथ-साथ ही बोलचाल की भाषा संस्कृत थी, जिसे लौकिक संस्कृत भी कहा जाता है। संस्कृतकालीन आधारभूत बोलचाल की भाषा परिवर्तित होते-होते 500 ई0 पू0 के बाद तक बहुत बदल गई जिसे ‘‘पालि‘‘ कहा गया। पहली ईसवी तक आते-आते पालि-भाषा और परिवर्तित हुई जिसे ‘‘प्राकृत‘‘ कहा गया। बाद में प्राकृत भाषाओं के क्षेत्रीय रूपों से अपभ्रंश भाषाएं प्रतिष्ठित हुई। अपभ्रंश भाषा साहित्य के दो रूप मुख्यतः पाए गए- पश्चिमी एवं पूर्वी। 1000 ई0 के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म हुआ। इसी अपभ्रंश से हिन्दी भाषा का उद्भव हुआ। हिन्दी में साहित्य रचना का कार्य 1150 ई0 के बाद तकरीबन 13वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ। 1800 से 1850 तक हिन्दी शब्द-भंडार मोटे तौर पर वही था जो मध्यकाल के अंतिम चरण में था। धीरे-धीरे अंग्रेजी के अधिकाधिक शब्द हिन्दी भाषा में आते जा रहे थे। 1850 से 1900 तक अंग्रेजी के और शब्दों के प्रयोग के अतिरिक्त आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार के कारण तत्सम शब्दों का प्रयोग बढ़ा जिससे कुछ पुराने तद्भव शब्द परिनिष्ठित हिन्दी से निकाले गए।