बालमुकुंद गुप्त और महावीर प्रसाद द्विवेदी का भाषा विवाद
अमित कुमार
बालमुकुंद गुप्त प्रतिष्ठित रचनाकार हैं। उनकी व्यंग्यपूर्ण शैली उनके लेखन को एक विशिष्ट आयाम प्रदान करती है। कविता और निबंध में उनका योगदान अविस्मरणीय है। गुप्तजी की बाल कविताएँ भी हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। ‘शिवशम्भु के चिट्ठे’ उनकी सर्वाधिक चर्चित कृति है। वे ‘भारत मित्र’ अखबार के संपादक के रूप में भी जाने जाते हैं। भाषा के प्रति उनका दृष्टिकोण उन्हें अपने समकालीनों में विशिष्ट बनाता है। गुप्तजी हिंदी को संस्कृतनिष्ठ बनाने के पक्षधर नहीं थे। वे भाषा को आम बोलचाल के शब्दों से समृद्ध करना चाहते थे। हिंदी का स्वरूप निर्धारित करने में उनका योगदान सर्वविदित है। बावजूद इसके अपने समय के प्रख्यात आलोचकों द्वारा उनकी उपेक्षा की गई। इस संदर्भ में रामचंद्र शुक्ल का नाम लिया जा सकता है। एक बार ‘अनस्थिरता’ शब्द को लेकर ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनमें विवाद होता है, जिसमें दोनों संपादक अपने-अपने लेखों के द्वारा मजबूती से अपना पक्ष रखते हैं। उनके इस विवाद में अन्य आलोचक भी हस्तक्षेप करते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस प्रकरण में महावीर प्रसाद द्विवेदी के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं। गुप्तजी लेकिन तर्क के साथ मोर्चे पर डटे रहते हैं।