बिहार की धरती से स्वतंत्रता दिलाने में वीरवर कुँअर सिंह का योगदान
सीता कुमारी
वीरवर कुँअर सिंह’ महाकाव्य में सन् 1857 ई. के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक महावीर कुँअर सिंह की शौर्य गाथा को श्री आरसी प्रसाद सिंह ने बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। बाबू कुँअर सिंह एक छोटे से रियासत जगदीशपुर के जमींदार शासक थे। यह क्षेत्र वत्र्तमान आरा के नजदीक है। कुँअर सिंह भारतभूमि की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। पटना, सोनपुर आदि कई स्थानों पर 1857 ई. के पूर्व क्रांतिकारियों की बैठकों में उनके सम्मिलित होने का पता चलता है। ऐसा तत्कालीन पटना के जिला मजिस्ट्रेट के द्वारा अपने वरीय अधिकारी को लिखे पत्रों में लिखा है। जब दानापुर के देशी सैनिकों ने विद्रोह किया तब उन्होंने बाबू कुँअर सिंह से ही नेतृत्व करने की याचना की जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस 80 वर्षीय महावीर के शौर्य से बड़े-बड़े रण बाँकुरे घबरा गए। उनके पराक्रम को देखकर अंग्रेज इतिहासकारों ने सत्य ही लिखा कि अगर यह अस्सी वर्षीय शेर अपनी 40 वर्ष की अवस्था में युद्ध करता तो अंग्रेजों को उसी समय भारत छोड़ कर भागना पड़ता। ‘‘इतिहासकार होम्स भी कुछ ऐसे ही विचारों को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि-‘हमलोग (फिरंगी) बहुत सौभाग्यशाली थे कि क्रांति के समय कुँअर सिंह की आयु 40 वर्ष नहीं थी। वह बूढ़ा राजपूत ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ आन से लड़ा और शान से मरा।
सीता कुमारी. बिहार की धरती से स्वतंत्रता दिलाने में वीरवर कुँअर सिंह का योगदान. International Journal of Hindi Research, Volume 6, Issue 4, 2020, Pages 126-128