शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भूमिका
प्रीति, साधना
भारत सरकार ने शिक्षा के विकास और सुसंगठित राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के विषय में परामर्श देने के लिए सन 1964 में ”शिक्षा आयोग की नियुक्ति की। मार्च 1977 में भारत में जनता दल की सरकार बनी। तत्कालीन सरकार ने अप्रैल 1979 में राष्ट्रीय शिक्षा-नीति का प्रारूप संसद में प्रस्तुत किया। परन्तु यह शिक्षा नीति कागजों पर रही क्योंकि 1980 में पुनः सत्ता का परिवर्तन हो गया। केन्द्र में पुनः कांग्रेस की सरकार बनी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979 की प्रस्तावना में कहा गया-”शिक्षा की आदर्श प्रणाली को लोगों को यह जानने के लिए तत्पर बनाना चाहिए कि उनकी शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमताएँ क्या हैं और उनका अधिकतम विकास किस प्रकार किया जा सकता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से शिक्षा में अनेक परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों के लाने में सन् 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अहम भूमिका रही है। परन्तु इस शिक्षा नीति के अधिकांश सुझाव कार्य-रूप में परिणत न हो सके, जिसके फलस्वरूप विभिन्न वर्गों तक शिक्षा को नहीं पहुँचाया जा सकता। साथ ही शिक्षा का विस्तार एवं स्तर का सुधार आवश्यकतानुसार न हो सका। इन समस्याओं का हल निकालना समय की प्रथम आवश्कयता है। अतः इन नवीन चुनौतियों तथा सामाजिक आवश्यकताओं से निपटने के लिए भारत सरकार ने एक नई शिक्षा-नीति तैयार की जो सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नाम से प्रसिद्ध है। इस राष्ट्रीय शिक्षा-नीति के प्रारूप में राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का ढाँचा तैयार किया गया। 21 वी सदी के 20 वे साल में भारत में नई शिक्षा नीति आई है। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य शैक्षिक क्षेत्र में भारत को वैश्विक महाशक्ति बनाना है और भारत के लिए नई शैक्षिक नीतियां के माध्यम से संपूर्ण भारत में शिक्षा का उचित स्तर प्रदान करना है जिससे शैक्षिक क्षेत्र की गुणवत्ता उच्च हो सके। भारत में बच्चों को तकनीकी तथा रचनात्मकता के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता का महत्व से अवगत कराना नई शिक्षा नीति का उद्देश्य है जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके।