साहित्य में भ्रमरगीत लिखने की एक परंपरा रही है। सूरदास ने उसी परंपरा का अनुसरण करते हुए भ्रमरगीत की रचना की। भ्रमरगीत एक प्रवास विप्रलंभ तथा उपालंभ काव्य ह। इसमें विरह की सभी दशाओं का वर्णन किया गया है। सूर के भ्रमरगीत का मूल रूप में एक संदेश काव्य है, इसका उद्देश्य बहुआयामी है। इसमें सामाजिक समानता, स्वतंत्रता स्त्री अस्मिता के महत्व को उजागर किया है इसका एक साहित्यिक महत्व भी हैं, क्योंकि इसमें भाव पक्ष एवं कला पक्ष का सुंदर समन्वय है। सूर ने भ्रमरगीत में उद्भव गोपियों संवाद के माध्यम से निर्गुण साधना पर सगुण महत्ता स्थापित कर गोपियों के प्रेम और विरह का विशद और व्यापक चित्रण किया ह। भ्रमरगीत में सूर ने राधा का चरित्र चित्रण और राधा-कृष्ण प्रेम के माध्यम से स्त्री प्रेम को गौरवान्वित किया है।