अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद संबंधी कुछ पहलुओं का समीक्षात्मक अध्ययन
सुभाष भिमराव दोंदे
भारत में 25 प्रमुख नदी बेसिन हैं, जिनमें से अधिकांश नदियाँ एक से अनेक राज्यों में बहती हैं। चूंकि नदी बेसिन एक साझा संसाधन हैं, जिसके के पानी के परिरक्षण, न्याय संगत वितरण और संधारणीय उपयोग के लिए राज्यों के बीच केंद्र की पर्याप्त भागीदारी के साथ एक समन्वित प्रयास आवश्यक है। किन्तु भारत में अतंर्राज्यीय नदियाँ बरसों से विवाद का मुद्दा बना हुआ हैं, जो सार्वजनिक संपत्ति के अधिकारों की परस्पर विरोधी धारणाओं, एकीकृत पारिस्थितिक तंत्र दृष्टिकोण की कमी और जल संसाधन विकास के लिए न्यूनतावादी जल विज्ञान के प्रचलन से प्रेरित हैं। पूर्वगामी विधेयक की तुलना में, 2019 में पारित हुआ अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद विधेयक, नदियों पर राज्यों के अधिकारों और सत्ता को अधिकाधिक केंद्र की ओर स्थानांतरित करता है। इस विधेयक में मौजूदा सरकार के विवादों के शीघ्र निपटारे के लिए श्आउट ऑफ बॉक्सश् सोच या पहल की तहत एक स्थायी ट्रिब्यूनल, विवाद समाधान समिति (डीआरसी) और विवाद समाधान प्रक्रिया की सहायता और समर्थन करने के लिए श्डेटा बैंकश् के लिए तकनीकी एजेंसी नियुक्त करने का प्रावधान है। कई अंतर्निहित त्रुटियों एवं बाह्य कारकों की वजह से 1956 चे चला आ रहा पूर्वगामी अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम- सफल नहीं हो पाया जिसके तहत तहत नौ ट्रिब्यूनल स्थापित किए गए थे, लेकिन केवल चार ने ही अंतिम पुरस्कार दिए। विशेष रूप से कावेरी नदी तथा रावी और ब्यास नदी जल विवाद तो तीन- तीन दशकों तक चले। कई ट्रिब्यूनल के गठन से काम की द्विरावृत्ति या पुनरावृत्ति हुई और लालफीताशाही में वृद्धि हुई। इसके अलावा मुद्दे के अनावश्यक राजनीतिकरण ने असामान्य जटिलताओं को जन्म दिया जिसके कारण जल विवाद को निपटाने में अत्यधिक समय लगा। इस पृष्ठभूमि में क्या प्रस्तावित संशोधित कानून लंबे समय से चले आ रहे अनसुलझे अतंर्राज्यीय विवादों के शिरोधार्य समाधान लिए के कारगर या सक्षम साबित होगा? प्रस्तुत अनुसंधान लेख अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद संबंधी कुछ पहलुओं का एक समीक्षात्मक अध्ययन है।
सुभाष भिमराव दोंदे. अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद संबंधी कुछ पहलुओं का समीक्षात्मक अध्ययन. International Journal of Hindi Research, Volume 8, Issue 3, 2022, Pages 1-4