वन गुर्जरों का हितरक्षक अर्थात वनाधिकार अधिनियम-2006: वृत्त का अध्ययन
सुभाष भिमराव दोंदे
वन आश्रित आदिवासीयों के लिए 'वन' सदियों से आजीविका और भरण-पोषण का संधारणीय स्रोत है। वन संसाधनों पर निर्भर भूमिहीन आदिवासी एवं वन गुर्जरों जैसे घुमंतू चरवाहे इस परिसंस्था के सदियों से मूल निवासी तथा अभिरक्षक है; जिनके गतिविधियों को वन विभाग द्वारा बरसों से क्रूरता पूर्वक प्रतिबंधित और विनियमित किया गया है। किन्तु वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अधिनियमित हो जाने के उपरांत वन आश्रितों के साथ अब तक किए गए 'ऐतिहासिक अन्याय' से उनके मुक्ती का मार्ग प्रशस्त हुआ है। यह क्रांतिकारी अधिनियम वैयक्तिक एवं सामुदायिक वन अधिकारों द्वारा वन समुदायों की आजीविका को सुरक्षित एवं सुनिश्चित करता है। अधिनियम के तहत वनों और प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपयोग के लिये स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने का प्रावधान है। खानाबदोश भैंस- चरवाहा 'वन' गुर्जर- देश का एकमात्र मुस्लिम आदिवासी समुदाय है; जो हिमालयी राज्यों की तलहटी में निवास करता हैं; जहाँ के पारंपरिक शीतकालीन चरागाह अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यानों के अंतर्गत आते हैं। भैंसों को चराने के लिये समुदाय द्वारा अपनाया गया 'ऋतु-प्रवास' और घुमंतू जद्दोजहद मुश्किलों से ओतप्रोत है। वन अधिकार अधिनियम के तहत, वन गुर्जर को अधिकार है कि वन क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्र में अपने मवेशियों को चरा सकें। उपरोक्त कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि उन समुदायों को जो पारंपरिक तौर पर घूम-घूमकर चरवाही करते रहे हैं, उन्हें चरवाही के मौसम में यह अधिकार मिलता रहेगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन्हें इसकी इजाजत नहीं दी जाती। इस पृष्ठभूमि में प्रस्तूत अनुसन्धान लेख वनाधिकार अधिनियम, 2006 के प्रावधानों के दायरे में वन गुर्जर समुदाय की वर्तमान दिशा और दशा के कुछ पहलुओं का वृत्त का अध्ययन (केस स्टडी) के रूप में एक समीक्षात्मक अध्ययन है।
सुभाष भिमराव दोंदे. वन गुर्जरों का हितरक्षक अर्थात वनाधिकार अधिनियम-2006: वृत्त का अध्ययन. International Journal of Hindi Research, Volume 8, Issue 3, 2022, Pages 35-39